भारतीय पुनर्जागरण आंदोलन के अद्वितीय नायक महर्षि दयानंद सरस्वती : एक समीक्षात्मक विश्लेषण
Author(s): राहुल, डॉ शगुफ्ता परवीन
DOI: https://doi.org/10.64880/theresearchdialogue.v4i3.05
सारांश
19वीं शताब्दी भारतीय इतिहास में पुनर्जागरण आंदोलन के लिए प्रसिद्ध है इस काल में तत्कालीन भारत की पतनशील परिस्थितियों को देखते हुए अनेक समाज सुधारकों ने समाज तथा धर्म में सुधार करने का प्रयत्न किया। इन समाज सुधारकों में महर्षि दयानंद सरस्वती का व्यक्तित्व विलक्षण है उनके द्वारा तत्कालीन समाज ,धर्म और राजनीति की स्थिति का व्यापक विश्लेषण किया गया। पाश्चात्य शिक्षा के प्रभाव से पृथक वेदों के आधार उन्होंने न केवल धर्म, दर्शन, के क्षेत्र में सुधार आंदोलन का नेतृत्व किया अपितु राजनीतिक, आर्थिक, शैक्षणिक व सामाजिक क्षेत्र में भी अपने विचार प्रकट किये। उनके द्वारा अपने विचारों को कार्य रूप में परिणत करने के लिए आर्य समाज नामक एक संस्था का भी निर्माण किया गया। महर्षि दयानंद सरस्वती के विचारों तथा आर्य समाज के कार्य जन सामान्य से संबंधित थे यह केवल मध्यवर्गीय शिक्षित समाज तक सीमित नहीं थे। इस प्रकार महर्षि दयानंद सरस्वती के विचारों ने न केवल भारतीय जन सामान्य में आत्मविश्वास के भाव प्रज्वलित किये वरन उन्हें राष्ट्रीय स्वतंत्रता के लिए भी प्रेरित किया। प्रस्तुत अध्ययन में महर्षि दयानंद सरस्वती के विभिन्न कार्यों का एक समग्र विश्लेषण करते हुये एक संपूर्ण चिंतक के रूप में महर्षि दयानंद सरस्वती के व्यक्तित्व का अध्ययन करने का प्रयास किया गया है। ऐतिहासिक शोध विधि का प्रयोग करते हुये विश्लेषणात्मक दृष्टिकोण अपनाते हुए महर्षि दयानंद सरस्वती की रचनाओं तथा द्वितीय स्रोतों के रूप में विभिन्न लेखकों द्वारा उनके जीवन तथा कार्यों पर किए गए अन्वेषणात्मक लेखन कार्यों का प्रयोग किया गया है।
विषय संकेत: राजधर्म, स्वराज, आर्यावर्त ,आर्यभाषा, आर्ष व अनार्ष ग्रंथ, शुद्धि।
Cite this Article:
डाॅ० अखिलेश प्रताप सिंह, प्रो० छत्रसाल सिंह ”शिक्षा के भारतीयकरण में स्वामी दयानंद सरस्वती का योगदान,The Research Dialogue, Open Access Peer-reviewed & Refereed Journal, pp.40 – 46.
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1राहुल, 2 डॉ शगुफ्ता परवीन, भारतीय पुनर्जागरण आंदोलन के अद्वितीय नायक महर्षि दयानंद सरस्वती : एक समीक्षात्मक विश्लेषण,The Research Dialogue, Open Access Peer-reviewed & Refereed Journal, pp.40–46. https://doi.org/10.64880/theresearchdialogue.v4i3.05
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