The Research Dailogue

भारत में महिलाओं की स्थितिः यथार्थ के आइने में

Vol. 04, Issue 03, pp. 01–08 |  Published: 10 October 2025

Author(s):डॉ0रवीन्द्र कुमार वर्मा, डॉ0 अतुल कुमार कनौजिया

सारांश
मानव समाज की संरचना में नारी का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है। वह केवल परिवार की धुरी नहीं, बल्कि समाज और संस्कृति की आधारशिला भी है। नारी जीवन को यदि “सृजन” और “संवर्धन” की संज्ञा दी जाए तो अतिशयोक्ति नहीं होगी, क्योंकि नारी ही जीवनदायिनी है। भारतीय परंपरा में नारी को देवी का रूप माना गया है कभी शक्ति, कभी लक्ष्मी और कभी सरस्वती के रूप में उसकी उपासना हुई है। किंतु यदि इतिहास के पन्नों पर दृष्टि डाली जाए तो यह भी उतना ही सत्य है कि समाज ने हर युग में नारी को समान अधिकार और सम्मान नहीं दिया। इसीलिए नारी जीवन का मूल्यांकन करना केवल एक सामाजिक आवश्यकता ही नहीं, बल्कि मानवीय संवेदना का भी प्रश्न है।
’वैदिक काल में नारी की स्थिति’ गौर करने योग्य है। उस समय नारी को पुरुष के समान स्थान प्राप्त था। गार्गी और मैत्रेयी जैसी विदुषियों ने शास्त्रार्थ कर अपनी विद्वत्ता सिद्ध की। वे शिक्षा, दर्शन और यज्ञ-कर्म में समान रूप से सहभागी थीं। यह युग नारी स्वतंत्रता और गरिमा का प्रतीक था। लेकिन जैसे-जैसे समाज में जटिलताएँ बढ़ीं, उत्तरवैदिक और मध्यकालीन समय में नारी की स्थिति में गिरावट आई। पर्दा प्रथा, बाल विवाह, दहेज और अशिक्षा जैसी कुरीतियों ने उसे जकड़ दिया। नारी जीवन परिवार तक सीमित होकर रह गया।आधुनिक युग’ में जब समाज सुधारकों ने इन रूढ़ियों को तोड़ने का प्रयास किया तो नारी जीवन में नया मोड़ आया। राजा राममोहन राय ने सती प्रथा के उन्मूलन का कार्य किया, ईश्वरचंद्र विद्यासागर ने विधवा विवाह की वकालत की और महात्मा गांधी ने स्वतंत्रता आंदोलन में नारी शक्ति को आगे लाकर उसकी नई पहचान स्थापित की। शिक्षा के प्रसार ने नारी जीवन को नई दिशा दी।
आज नारी केवल घर की देखभाल तक सीमित नहीं, बल्कि राजनीति, साहित्य, कला, विज्ञान, प्रशासन और उद्योग-धंधों में भी अपनी प्रतिभा सिद्ध कर रही है। वह आत्मनिर्भर बन रही है और समाज को नए दृष्टिकोण से आगे बढ़ा रही है। किंतु यह भी उतना ही सत्य है कि नारी अभी भी कई चुनौतियों का सामना कर रही हैकृलैंगिक भेदभाव, घरेलू हिंसा, कार्यस्थल पर उत्पीड़न, शिक्षा और स्वास्थ्य की असमान उपलब्धि इत्यादि।नारी जीवन संघर्ष और उपलब्धि, दोनों का सम्मिश्रण है। उसने विपरीत परिस्थितियों में भी अपनी पहचान बनाई और समाज को दिशा दी। यदि नारी को समान अधिकार और अवसर प्रदान किए जाएँ तो वह न केवल परिवार का बल्कि राष्ट्र का भी उत्थान कर सकती है। किसी भी सभ्यता और संस्कृति की प्रगति नारी की स्थिति और उसकी गरिमा पर ही निर्भर करती है। नारी सशक्त होगी तो समाज सशक्त होगा, और समाज सशक्त होगा तो राष्ट्र भी सशक्त होगा।
बीज शब्द – स्वतंत्रता, सृजन, संवर्धन, नजरअंदाज, लिंगानुपात, सशक्तिकरण।

Cite this Article:

वर्मा, डॉ0रवीन्द्र कुमार,कनौजिया, डॉ0 अतुल कुमार . (2025). भारत में महिलाओं की स्थितिः यथार्थ के आइने में.The Research Dialogue, Open Access Peer-reviewed & Refereed Journal, 3(1), pp.01 – 08. https://doi.org/10.64880/theresearchdialogue.v4i3.01


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